अध्यापक- शिक्षा की बुनियादी जरूरतें
ज्ञान सिर्फ़ वो नहीं है जो शब्दों में कैद है .‘ज्ञान’ को उसकी खुली प्रकृति के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए|. अध्यापक-शिक्षा कार्यक्रम में ‘काम’ और ‘विचार’ को एक साथ किए जाने की जरूरत है। इसलिए अध्यापक-शिक्षा कार्यक्रम में शिक्षण अभ्यास और विभिन्न प्रकार की गतिविधियों (संगीत, नाटक, खेलकूद इत्यादि) का गहन अनुभव होना चाहिए।
शिक्षा के सम्बन्ध में बुनियादी विचारों की जानकारी एवं दुनिया भर में चल रहे शिक्षायी विमर्श की जानकारी शिक्षक को उसकी अकादमिक परिस्थितियों से जूझने में मदद पहुँचाती है। इसलिए एक शिक्षक की तैयारी के क्रम में उसे बुनियादी दार्शनिक, सामाजिक व शिक्षायी विचारों की जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही उसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चल रहे शिक्षायी नवाचारों की भी जानकारी होनी चाहिए। यह समझ शिक्षक को नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तो तैयार करती ही है साथ ही उसे ‘विकल्प’ तलाशने के लिए भी प्रेरित करती है। अध्यापक-शिक्षा का एक अनिवार्य अंग है बच्चों को समझना (उनके विकास व सीखने की प्रक्रिया के साथ) इस क्रम में बच्चों के विभिन्न पहलुओं जैसे मानसिक, सामाजिक, नैतिक व शारीरिक विकास को समझने के क्रम में हमें विभिन्न मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों को भी समझना होगा।
अध्यापक-शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण आयाम है ‘शिक्षा के साहित्य’ से परिचय, ताकि शिक्षक साहित्य, संस्कृति और समाज के परिपेक्ष्य में शिक्षा को समझ सके। इसकी जानकारी के लिए जरूरी है कि हम उन अनुभवों को जाने जिसे बच्चों के साथ काम करते हुए दर्ज किया गया है। जैसे गिजुभाई का दिवास्वप्न, डेविड ऑसब्रो का नील-बाग का अनुभव, ए एस नील का समरहिल का अनुभव, या बारबियाना स्कूल के बच्चों का अनुभव। समावेशी शिक्षा के लिए शिक्षक-शिक्षिकाओं को यह जानकारी होनी चाहिए कि बच्चों में कई प्रकार की भिन्नताएँ होती हैं। कुछ बच्चे धीरे-धीरे सीखते हैं, जबकि कुछ रफ़्तार में। कई बच्चों को अधिक सहारे और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है जबकि अन्य बिना किसी सहारे स्वयं सीख लेते हैं। यह मान्य है कि धीरे-धीरे सीखने वाले बच्चों को अधिक समय की आवश्यकता होती है, कक्षा के अन्दर हो या बाहर।
समावेशी शिक्षा का तात्पर्य है सभी बच्चों को तरह-तरह की भिन्नताओं के बावजूद उन्हें पठन-पाठन का अवसर एक ही प्रकार के वर्ग के रूप में समान रूप से प्राप्त होना। इसकी विशेषता यह है कि एक समरूप माहौल में समानता के साथ कई प्रकार की भिन्नता एवं विषमता के होते हुए भी सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना। यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि कुछ बच्चे होंगे जिन्हें विशेष जरूरत वाले बच्चों के रूप में चिन्हित किया गया हो। ऐसे बच्चों की कुछ श्रेणी निम्न है: 1) हियरिंग इम्पेयरमेंट (सुनने व बोलने की दिक्कत) 2) मेंटल रिटार्डेशन (मानसिक दिक्कत) 3) लोकोमोटर इम्पेयरमेंट (शारीरिक व मांसपेशीय दिक्कतें) 4) विजुअल इम्पेयरमेंट (दृष्टि सम्बन्धी दिक्कतें) 5) लर्निग डिसएबिलिटीज (सीखने सम्बन्धी दिक्कतें) शिक्षक को अपने कर्त्तव्य के निष्पादन में उपर्युक्त श्रेणी के बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखना होगा, ताकि बच्चों को अपनी कमियों का एहसास कम हो।